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#SarkarOnIBC24: तीसरी बार मोदी सरकार..चुनौती हजार, गठबंधन में कितनी बंध जाएगी मोदी सरकार? देखिए रिपोर्ट

नई दिल्ली: Modi Oath Ceremony 2024 तीसरी बार मोदी सरकार ये नारा तो ज़मीन पर उतरा लेकिन बीजेपी का अकेले अपने दम बहुमत के आंकड़े से दूर रह जाने से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तीसरी पारी की चुनौतियां बढ़ गई हैं। सबसे पहली और सबसे बड़ी चुनौती तो यही होगी, जिसका सामना उनकी ही पार्टी के भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पूरे कार्यकाल के दौरान करते रहे थे यानी गठबंधन को संभालना।

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Modi Oath Ceremony 2024 2014 में अबकी बार मोदी सरकार 2019 में फिर एक बार मोदी सरकार और अब 2024 में तीसरी बार मोदी सरकार बनने जा रही है। भारतीय राजनीति के इतिहास में और पिछले 6 दशक में नरेन्द्र मोदी इकलौते ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने लगातार तीन बार प्रधानमंत्री बनने का जनादेश दिया है।

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महज 44 साल पहले बीजेपी नाम के जिस पौधे को अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने लगाया था। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वो इतना विशालकाय वटवृक्ष बन चुका है कि लगातार तीसरी बार बन रही सरकार की बड़ी उपलब्धि भी छोटी पड़ गई है।

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शायद ये पंक्तियां नरेन्द्र मोदी के भी मन में आ रही होंगी क्योंकि गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से लेकर अब तक ये पहली बार हुआ है, जब जनता ने उनकी पार्टी को पूर्ण बहुमत देने में थोड़ी कंजूसी कर दी हो। बीजेपी 2014 और 2019 की तरह इस बार अपने दम बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई और इसने मोदी 3.0 की चुनौतियां उनके शपथ लेने से पहले ही बढ़ा दी हैं। चुनौतियां उससे भी बड़ी, जिसका सामना 1999 से लेकर 2004 तक के अपने पूरे कार्यकाल में बीजेपी के ही भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को करना पड़ा था। यानी गठबंधन को संभालना।

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मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार की ये तीसरी पारी गठबंधन धर्म के निर्वाह की अग्निपरीक्षा बन सकती है। जिस तरह से शिवसेना और अकाली दल जैसे पूर्व एनडीए घटक मोदी के ही प्रधानमंत्री रहते अलग हुए अगर दोबारा से साथ आए जेडीयू और टीडीपी जैसे सहयोगी अलग हुए तो सरकार अल्पमत में आ जाएगी। ये चिंता लाजिमी भी है। यही वजह रही कि शुक्रवार को NDA संसदीय दल की बैठक में नरेंद्र मोदी सवा घंटे के संबोधन में अगर सबसे ज्यादा किसी शब्द का इस्तेमाल किया, तो वो गठबंधन रहा।

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मोदी थ्री प्वाइंट ओ की दूसरी बड़ी चुनौती ये भी होगी कि अब उसे बीजेपी के एजेंडे के बड़े फैसलों पर अपने सहयोगियों की रजामंदी हर हाल में हासिल करनी होगी और ये आसान नहीं होगा जैसे CAA और समान नागरिक संहिता पर एनडीए के सभी दल अभी भी एकमत नहीं हैं। मोदी 3.0 के दौरान बीजेपी को ये ख्याल भी रखना होगा कि जिस तरह शिवसेना में टूट हुई थी, उस स्थिति से परहेज करना। नीतीश कुमार इसी डर से पिछली बार एनडीए से अलग होकर गठबंधन से जा मिले थे। तब बीजेपी को लोकसभा में खतरा नहीं था, लेकिन मौजूदा स्थिति में ये खतरा हो भी सकता है।

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मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी लोकसभा जीत के बावजूद इस बार के नतीजों ने पहली बार देश को ये संदेश दिया कि मौजूदा नेतृत्व में बीजेपी अपने दम बहुमत से दूर रही तो अगली बार के लिए नए चेहरे की तलाश तय है। चुनाव प्रचार के दौरान विपक्ष की ओर से ये सवाल उठा भी था कि 75 पार बीजेपी नेताओं के लिए पद त्यागने का प्रावधान है। ऐसे में ये सवाल अब पार्टी के भीतर से भी उठने की आशंकाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।

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लेकिन, इन संभावित चुनौतियों के बावजूद इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि प्रधानमंत्री मोदी लोकप्रियता और स्वीकार्यता के मामले में भी देश के बाकी तमाम नेताओं से काफी आगे हैं और उनका जादू भले ही थोड़ा कम हुआ हो, लेकिन चूका नहीं है…और यही आत्मविश्वास मोदी 3.0 को चुनौतियों से निपटने का हौसला भी बन सकता है।

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