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MP Politics: हाईकमान ने डुबोई नाव.. नोटा भरेगा घाव! आखिर बीजेपी कौन सा खेल रही दांव..? देखें रिपोर्ट

MP Politics: भोपाल। दल बदलने के बाद अक्सर दिल के अरमान बाहर आ ही जाते हैं।ऐसा ही कुछ हुआ रामनिवास रावत के साथ, पार्टी छोड़ी, बीजेपी में गए। फिर कहा कि कांग्रेस में फैसला तो सब ऊपर से होता है। बस फिर क्या था… सियासी बवाल तो मचना ही था। इधर जीतू पटवारी ने इंदौर में नोटा को वोट देने की अपील कर दी…तो सवाल ये है कि क्या एमपी कांग्रेस में मची हुई भगदड़ का जिम्मेदार कौन है?

हाल ही में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले रामनिवास रावत के इस बयान से एक बार फिर से इस बात को हवा मिल गई कि एमपी के फैसले कांग्रेस हाईकमान करती है। कल रामनिवास रावत बीजेपी में शामिल हुए और आज कांग्रेस के कामकाज के तरीकों पर सवाल उठाकर चुनाव से टीक पहले कांग्रेस को कटघरे में खड़ा कर असहज कर दिया।

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इधर कांग्रेस की स्थिति खिसियानी बिल्ली सरीखी हो गयी है। अगर नहीं हुई है तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी नोटा को वोट देने की अपील क्यों कर रहे हैं, क्यों नहीं कांग्रेस किसी निर्दलीय प्रत्याशी को अपना समर्थन देकर उसे बीजेपी के मुकाबले खड़ा कर रही है। ये सारे वो सवाल हैं जिन्हें जीतू पटवारी के नोटा को वोट देने के बयान के बाद से खड़े होने लगे हैं।

जाहिर है इस बार के चुनावों में बीजेपी के नेताओं के बीच ही एक खास तरह का मुकाबला चल रहा है। मुकाबला ये कि कौन इस बार ज्यादा वोटों से रिकॉर्ड जीत दर्ज करेगा। सबकी निगाहें इस बार इंदौर पर था कि इंदौर से बीजेपी इस बार अपनी जीत के पुराने रिकॉर्ड 5 लाख 47 हजार से पार जाएगा। यानी 8 लाख वोटों से जीत के टारगेट को पूरा करेगा। लेकिन कांग्रेस ने बीजेपी को वॉक ओवर दे दिया। अब ये भी माना जा रहा है कि कांग्रेस के चुनावी मैदान में नहीं रहने की वजह से भले इंदौर के बीजेपी कैंडिडेट बड़े मार्जिन से जीत जाएं लेकिन उस तरह का श्रेय उन्हें नहीं मिलेगा।

खैर.. सवाल अब भी वही है कि इंदौर में 13 प्रत्याशियों के होने के बावजूद कांग्रेस नोटा को वोट डलवाकर क्या हासिल करना चाहती है।क्या कांग्रेस अब चुनाव जीतने के बजाए बीजेपी कैंडिडेट की रिकॉर्ड जीत को कम करने का आखिरी दांव खेल रही है या फिर वाकई कांग्रेस चुनावों को लेकर गंभीर है। जो भी हो लेकिन ये तो तय है कि इंदौर में चुनाव एकतरफा हो चुका है।

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MP Politics: बीजेपी के रणनीतिकार तो निर्विरोध जीत हासिल करना चाह रहे थे। लेकिन निर्दलिय प्रत्याशियों को बीजेपी का ये एजेंडा रास नहीं आया। लिहाजा अब भी इंदौर में बीजेपी कैंडिडेट के सामने 13 प्रत्याशी खड़े हैं। बावजूद इसके बीजेपी चुनाव को हल्के में लेने की गलती नहीं कर रही है। अब उंगली तो कांग्रेस खेमे की तरफ उठ रही है क्योंकि पहले प्रत्याशी ने मैदान छोड़ा फिर कांग्रेस ने नोटा की वकालत शुरु कर दी।

 

 

 

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