दुर्ग एक के लिए बपौती तो दूसरे षहर के लिए आरएसएस का साख
दुर्ग एक के लिए बपौती तो दूसरे षहर के लिए आरएसएस का साख

दुर्ग। षहर में चुनाव लड रहे अरूण वोरा जहां कटटर कांग्रेसी है वहीं भाजपा प्रत्याषी गजेन्द्र यादव आरएसएस के कार्यकर्ता है। अरूण वोरा का पक्ष कांग्रेसी ही कमजोर कर रहे हैं, अधिकतर कांग्रेसी कार्यकर्ता दबे मन से यह कहने में जरा भी संकोच नही कर रहे हैं कि कांग्रेस के लिए रात दिन एक करने वाले राजनेता को जब तक अरूण वोरा है तब तक षायद ही टिकिट मिले, अर्थात कांग्रेस की टिकिट बपौती बन चुकी है। भले ही तीन बार लगातार हारने के बाद भी कांग्रेस की टिकिट उनके चरण पादुका तक पहुंच गई थी, जिसका उन्हें फायदा भी मिला ओैर फिर विधायक दुर्ग षहर बने गये। अब पुनःविधायक पद की दौड में कांग्रेस का दामन थाम कर चुनावी समर 2023 में कूूद पडे है। पिछले विधानसभा चुनाव में तो उन्हें उनके पिताश्री मोतीलाल वोरा का भरपूर समर्थन मिला था जिसके कारण जीत का स्वाद चखे थे, लेकिन इस बार पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा नही है इसका भी भारी प्रभाव इस बार पडेगा। इस बार अब उनको कौन संरक्षण देता है, वह इस चुनाव 2023 में पता चल जायेगा। क्योंकि दबे जुबान से वरिष्ठ कांग्रेसियों विषेष कर युवा कांग्रेसी यह कहने से नही चूक रहे हैं कि क्या कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उनकी सुध लेंगे और सांसद विधायक का तमगा लगायेंगे। दूसरी ओर भाजपा ने एक ऐसे युवा को टिकिट दिया है जो खांटी आरएसएस बनाम भाजपाई है। दुर्ग षहर के आम जन उससे उतना ही अपरिचित है जितना कि उनके पिताश्री बिसराराम यादव परिचित है। श्री यादव आरएसएस के छत्तीसगढ प्रभारी भी रहे हैं। भाजपा ने इस बार टकढी चाल चली है वह यह है कि एक बार हिन्दुत्व की छबि वाले व्यक्ति गजेन्द्र यादव को टिकिट दी गई है। श्री यादव भले ही आरएसएस से जुडे हुए है, बल्कि स्काउट गाईड का प्रतिनिधित्व भी करते रहे है। यदि पूर्व मंत्री हेमचंद यादव के समर्थक खुले दिल से मतदान करते हैं तो गजेन्द्र यादव चुनाव जीत जाए उसमें किसी को षंका नही होगी। वैसे भी गजेन्द्र यादव ओबीसी समुदाय का प्रतिनिधित्व करते है, जिसकी इस चुनाव क्षेत्र में 52 प्रतिषत है। यादव समाज के लोग भी बहुतायत में है, इस कारण अरूण वोरा जैसे विधायक को कडी टक्कर देने में गजेन्द्र यादव सक्षम है। षायद यही कारण है कि भाजपा ने हेमचंद यादव के परिवार के बदले बिसराराम यादव परिवार को महत्व दिया है।