छत्तीसगढ़

प्राकृतिक खेती पर दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन

प्राकृतिक खेती पर दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन

कवर्धा, 09 जनवरी 2023। कृषि विज्ञान केन्द्र में 4 एवं 5 जनवरी को प्राकृतिक खेती पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. बी.पी. त्रिपाठी ने कृषकों को संबोधित करते हुए कहा कि रासायनिक उर्वरको एवं कीटनाशकों आदि के कारण मृदा स्वास्थ, मानव एवं पशुओ के स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण भी प्रदूषित हो रहा है। जिसके कारण विभिन्न प्रकार के रोग हो रहे है। इसके दूष्प्रभाव को कम करने के लिए प्राकृतिक खेती कारगर सिद्ध होगी। उन्होंने कहा कि हानिकारक कीटनाशकों के उपयोग से लागत बढ़ती है तथा भूमि का प्राकृतिक स्वरूप भी बदल जाता है। प्राकृतिक खेती मुख्यतः देशी गाय पर आधारित है तथा यह कृषि की प्राचीन पद्धति है। यह भूमि प्राकृतिक स्वरूप को बनाये रखती है। श्री त्रिपाठी ने बताया कि प्राकृतिक खेती में मुख्य रूप से गौ आधारित उत्पाद जैसे बीजामृत, जीवामृत, घनजीवामृत एवं नीमाशास्त्र आदि का उपयोग किया जाता है।
प्रशिक्षण में कृषकों को बीजामृत, जीवामृत, घनजीवामृत एवं नीमाशास्त्र आदि बनाने की प्रायोगिक जानकारी दी गई। जिसके तहत जीवामृत बनाने के लिए 200 लीटर प्लास्टिक के ड्रम में पानी 170 लीटर, देशी गाय का गोबर 10 किलोग्राम, गौमूत्र 8-10 लीटर, गुड़ 1 से 1.5 किलोग्राम, खेत या बड़े पेड़ के नीचे की 1 मुठ्ठी मिट्टी लेकर घोल लें। घोल को घड़ी की सुई की दिशा में सुबह-शाम 2-3 मिनट तक घोलें। इसको बोरी से ढक कर छांव में रख दें। यह घोल गर्मियों में 3-4 दिन व सर्दियों 6-7 दिन में तैयार हो जाएगी। तैयार होने के बाद इस घोल को गर्मियों में 7 दिन व सर्दियों में 14 दिन के अन्दर-अन्दर प्रयोग कर लें। उन्होंने बताया कि घनजीवामृत बनाने के लिए देशी गाय का सुखा गोबर 100 किलोग्राम, गुड़ 1.5 किलोग्राम, बेसन 1.5 किलोग्राम, खेत या मेढ़ को मिट्टी 1 मुठ्ठी, देशी गाय का गोमूत्र आवश्यकतानुसार।  इस मिश्रण को 2-4 दिन तक छाया में अच्छी तरह सुखाएं। घनजीवामृत को अच्छी प्रकार सूखने व बारीक करने  के बाद खेत में 6 महीने तक सिंचाई से पहल उपयोग में ला सकते है।
उन्होंने बताया कि नीमास्त्र बनाने के लिए नीम की हरी पत्तियां या सूखे फल 5 किलोग्राम, देशी गाय का मूत्र 5 लीटर, देशी गाय का गोबर 1 किलोग्राम, पानी 100 लीटर। नीम की हरी पत्तियां या सूखे फलों को कूट लें। कूटी हुई सामग्री को पानी में मिलाएं। देशी गाय का मूत्र मिलाएं व तद्पश्चात देशी गाय का गोबर मिला लें। मिश्रण को 48 घंटे बोरी से ढक कर छाया में रखें। मिश्रण को सुबह-शाम लकड़ी से घड़ी की सूईयों की दिशा में घोलें। 48-96 घंटे बाद कपड़े से छानकर एक एकड़ फसल पर छिड़काव कर सकते है। इससे रस चूसने वाले कीड़े, छोटी सूंडी, इल्लियों के लिए उपयोगी है। प्राकृतिक कृषि करने से भूमि में लाभदायक सूक्ष्म जीवो के साथ-साथ केचुओं के संख्या में वृद्धि होती है एवं कृषि लागत में कमी एवं कृषि उत्पादो की गुणवत्ता में वृद्धि होती है। प्राकृतिक खेती अंतर्गत आच्छादन का उपयोग किया जाता है। जिससे नमी संरक्षण में लाभ होता है एवं खरपतवार कम पनपते है। अतंवर्तीय फसल भी इस कृषि के अतंर्गत अपनायी जाती है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में जिले के 20 कृषको ने भाग लिया।

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