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जब मेरे घर आये शङ्कराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती

 

 

 

 

 

 

सबका संदेश न्यूज़ छत्तीसगढ़ कवर्धा- जब मेरे घर आये शङ्कराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती

सहसपुर लोहारा में मेरे निज निवास श्री गुरु कृपा प्रसाद में उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं पश्चिम्नाय द्वराका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज श्री का प्रथम नगर आगमन मुझ गरीब के निवास श्री गुरु कृपा प्रसाद में होना ठीक वैसा ही था जैसा शबरी की कुटीया में वनगमन के समय श्रीराम प्रभु का आगमन और भीलनी शबरी के हांथों बेर का खाना ।

महाज्ञानी विदुर जी के घर श्रीकृष्ण का आना और विदुर जी की अनुपस्थिति में विदुराइन के हांथों केले के छिलके खाना , ठीक वैसा ही मेरे साथ हुआ जब द्वय पिठाधीश्वर शङ्कराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती जी का मेरे घर आना और यह सब सुलभ हो पाया भाईश्री चन्द्रप्रकाश उपाध्ययय जी के विशेष सहयोग से , हमने गुरुदेव श्री से कोलकाता चातुर्मास पश्चात बिलासपुर जाकर सहसपुर लोहारा आगमन के लिए निवेदन किये थे ।

बिलासपुर में जब गुरुदेव श्री की स्वीकृति मिली और मैंने कहा ठीक है गुरुदेव मैं आपके सहसपुर लोहारा आगमन की तैय्यारी करता हूँ । तब जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द जी के शब्द थे , क्या तैय्यारी करोगे , हमारे यहाँ चढ़ावे की कोई बाध्यता नही है माँ भगवती का दिया हुआ हमारे पास सब कुछ है । हम वो जगद्गुरु हैं जो कभी किसी से यह नही पूछते की किस गुरु के चेले हो और कौन सी पार्टी से हो हमारे लिए सभी एक समान हैं । जगद्गुरु ने यह भी कहा कि शङ्कराचार्य का पद कोई लाभ का पद नही है ।

 

जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी का आगमन जब भिलाई से 23 सितम्बर को मेरे निवास श्री गुरु कृपा प्रसाद में होने वाला था तब शङ्कराचार्य जी को लाने उनकी अगुवाई करने भाई श्री चन्द्रप्रकाश जी उपाध्याय स्वयं सहसपुर लोहारा थाना की सिमा नरोधी तक गए थे और शङ्कराचार्य जी के साथ उन्ही की स्पेशल वैनिटी वैन में गुरुदेव को लेकर श्री गुरु कृपा प्रसाद पहुंचे , मैं और मेरे पांव जैसे जमी पर ही नही थे । जैसे ही वैनिटी वैन का दरवाजा खुला और कुछ क्षण में ही जगद्गुरु जी जैसे ही स्पेसल वैनिटी वैन ( बस ) की लिफ्ट की ओर आये और लिफ्ट जैसे ही धीरे – धीरे उतरना शुरू हुआ तो मानो ऐसा महसूस हो रहा था कि साक्षात् नारायण स्वरूप , नारायण ही पुष्पक विमान से उतर रहे हों , मुझे विश्वास ही नही हो रहा था की जगद्गुरु जी का आगमन हो चूका है । शङ्कराचार्य जी के आगमन में आसमान धर्म की जय हो , शंख ध्वनी , घड़ी – घण्ट , घड़ियाल , बैंड बाजों, आतिशबाजियों से गुंजायमान हो रहा था । गुरुदेव का फूलमालाओं से ऐतिहासिक स्वागत हो रहा था , वातावरण ऐसा था मानो मुझ सुदामा ब्राम्हण के घर साक्षात् श्रीकृष्ण जी का ही आगमन हो रहा हो ,चारो तरफ सिर्फ जय – जय कार ही सुनाई दे रहा था और मेरे सामने साक्षात् शिव स्वरूप शङ्कराचार्य जी हाँथ में दण्ड धारण किये हुए विराजमान थे , हमारा पूरा राजपुरोहित परिवार वैदिक मंत्रोच्चार के साथ श्री शङ्कराचार्य भगवान का विधिवत पूजन कर रहा था । शङ्कराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती जी की मधुर मुश्कान मानों सभी प्रकार के तापों को हर रही हो , उनके प्रथम नगर और मेरे निज निवास श्री गुरु कृपा प्रसाद में आगमन अविस्मरणीय और ऐतिहासिक क्षण रहा ।

पण्डित देव दत्त  शर्मा

 

 

 

 

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