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*सी-मार्ट में एक ही छत के नीचे किफायती दर पर मिल रहा है स्थानीय उत्पाद का सामान*

बेमेतरा:- सी-मार्ट (छत्तीसगढ़-मार्ट) यानी की एक ऐसा बाजार जहां पर सभी प्रोड्क्टस एक ही छत के नीचे मिलने लगे हैं और यह उत्पाद किसी बड़े दुकानदार से नहीं बल्कि उन महिलाओं, शिल्पिकार, बुनकर, दस्तकर और अन्य पारंपरिक एवं कुटीर उद्योग से खरीदे जाएंगे जो गांव में तैयार किये जाते हैं। यह वह महिलाएं, संस्था हैं जो गांव में रहते हुए स्वरोजगार की दिशा में आगे बढ़कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने का काम कर रही है। सी-मार्ट का संचालन महिला स्व-सहायता समूह द्वारा किया जा रहा है। सी-मार्ट स्टोर में महिला समूहों द्वारा बनाए गए विभिन्न प्रकार के हर्बल साबुन, आचार, मसाले, मुर्रा, दोना-पत्तल, काजु, विभिन्न प्रकार के शर्बत, देवभोग के डेयरी प्रोडक्ट, कोरिया की हर्बल चाय, लेमन ग्रास चाय, विभिन्न ऑइल से लेकर डिशवॉशर, टायलेट फ्लोर क्लीनर, मशरूम पाउडर, शहद, तेल-गुड़, देसी चना, लाल चॉवल विक्रय किया जा रहा है। सी-मार्ट द्वारा अब तक 16.80 लाख रुपये की समाग्री का विक्रय किया गया। जिसमें महिला स्व-सहायता समूह को 5.20 लाख की आमदनी हुई।

प्रदेश के कृषिमंत्री ने इस साल मई माह में जिले का पहला सी-मार्ट का लोकार्पण किया। यह सी-मार्ट बेमेतरा के हृदय स्थल डीईओ ऑफिस के पास संचालित है। जिले की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और ग्रामीण कामकाजी महिलाओं को मजबूत बनाने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशानुरूप ही जिले में सी-मार्ट बनने से अब एक ही छत के नीचे राशन सहित विभिन्न स्थानीय उत्पाद बाजार से किफायती दरों पर उपलब्ध हो रहे हैं।

सी-मार्ट मील का पत्थर साबित-ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने सी-मार्ट मील का पत्थर साबित हो रहा है। वर्तमान में अलग-अलग समूह की महिलाओं द्वारा गांवों में उत्पाद तैयार किये जाते हैं, जिन्हें हाट बाजार एवं आसपास के दुकानदारों को बेचकर मुनाफा कमाती हैं, लेकिन सी-मार्ट के खुलने से इन ग्रामीण महिलाओं द्वारा तैयार उत्पाद को शहरों में आसानी से बेच सकेंगे और शहरों के अन्य दुकानदार भी यहां से सामान खरीद सकेंगे।

महिला समूहों को मिलेगी नई पहचान-पारंपरिक उत्पादकों की प्रोसेसिंग, पैकेजिंग, ब्रेडिंग एवं मार्केटिंग के बारे में विस्तार से महिला स्व सहायता समूहों को अवगत कराया जा रहा है। जिसके बारे में विभिन्न विभागों के समन्वय करते हुए उन्हें सिखाया जाएगा। इससे स्व सहायता समूहों की महिलाओं को नई पहचान मिलेगी और उनका गांव से निकलकर उत्पाद शहरों में आसानी से बिक सकेगा।

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