छत्तीसगढ़ी म पढ़व- झन भूंजौ छानही मं चढ़के होरा
वाह रे समे, वाह रे जमाना, तैं जउन कर ले सब सही हे, तोला सब फभ जही. तैं समरथ हस, अउ कोनो दूसर करही तेकर बर तोर आंखी फूटे ले धर लेथे. अनदेखना हस, दूसरे के करे धरे ला भावस नहीं. अतेक अंजलइत, अतेक अतियाचार, अउ अनिवाय ला भला कोन सइही, फेर सब सहत हे. देखत हे, मुंह चुप हे, तारा ठेंस ले हे. का करबे, जब समे साथ नइ दय, तब ओ समे चुप रेहे मं भलई हे. झूठ, फरेब के जमाना हे. देख रे आंखी, सुन रे कान, तइसे कस ये जमाना हे. कोनो मारत हे, तब ओला मार खाते राहन दे, कोनो ककरो घर ला लेसत हे तब लेसन दे, ककरो बेटी, बहू, गोसइन ला अपहरण करके लेगत हे तब लेगन दे, ओहर कतको गोहार पारय, बचा लौ भइया, बचा लौ दाई-ददा मोर फेर कोनो कनमटक झन दौ, काबर जउन भगा के लेगत हे, तेकर हाथ मं तलवार हे, बंदूक हे. दया-मया मरे के जमाना नइहे, कहूं सोग मरबे, ओकर कोती पांव बढ़ाबे, तब दूसर के लफडा मं परे मं घाटा के सिवा कुछु हासिल होवइया नइहे, जउन दया मरे हे, बचाय बर, तउने मनखे भोंगा हे तलवार मं, टीप दे हे बंदू में.
बहुत खराब समे आगे हे. अनदेखनी के जमाना हे. कोनो देख नइ सकत हे ककरो घर दुआर, खेत-खार, धंधा-पानी अउ सत्ता ला? अच्छा खासा कारोबर चलत हे, घर-दुआर चलत हे, परिवार मं सुख-शांति हे तब एला अनदेखना मन देख नइ सकय. टंगरी मार के गिराय के उदीम करत हे. अरे छोटे मनखे, गरीब घर-परिवार मन के बात ला जान दे, राजनीति मं घला अइसने अनदेखनी के रोग के महामारी लग गेहे. मोरे राज चलय, मही पूरा देश भर मं राज करौं, महीं खांव पियौं, दल, पारटी, परिवार, बेटा-बेटी, बहू छकल-बकल करयं. अउ दूसर मन कटोरा धर के भीख मांगें बर हमर दुआरी मं आवत राहैं. मुंह मं राम बगल मं छूरी कस एकर मन राजनीति चलत हे. काला का कहिबे, कहिबे तब अपजस हे, चिन्हऊ मं आ जबे. फलाना हा कइसे काहत रिहिसे, दइसे-दइसे ओकर सोच-विचार हे. एकर ले सावधान रेहे के जरूरत हे.अभी समे ओकर साथ देवत हे तब उचकत हे मेचका बरोबर, बेंदरा बरोबर. जानत सबो ला हे ओहर, काबर के दूरदीन ले उहू हा गुजरे हे फेर अपन दिन ला भुलागे, कइसन दिन देखे के बाद आज अइसन सुख के दिन देखे ले मिले हे. दूध के जरे छाछ ला फूंक-पूंक के पीथे, फेर लगथे अपन ह अपन ओ दिन ला भुलागे, अउ आज हमीच मन हन काहत हे. सत्ता, सुंदरी, धन अउ पानी कभू एक ठउर के रमइया नोहय, एमन चंचल बानी के होथे. कब फिसल जही, तेकर कांही भरोसा नइ राहय, अइसन मन ऊपर भूल के भरोसा नइ करना चाही. फेर का करबे अहंकार हा अंधरा बना देथे. मैं का करथौं, सही हे या गलत ओ सब सोचे-समझे के सक्ती ला हर लेथे अउ अइसे हर्रस ले मुड़भसरा गिर जथे जइसन कभू सोचे नइ रहिबे. तब धुर्रा चांटे के सिवाय कांही हासील नइ आवय. ये धुर्रा ला घला कभू-कभू अइसन अहंकार हो जथे तब आंधी-तूफान आथे तब उड़ा के जब आगास मं जब हाथ-पांव मारथे तब सोचथे- मोर ले बड़े भाग्यशाली ये दुनिया मं कोनो नइहे, मही ब्रम्हाण्ड के बादशाह हौं, परमात्मा हौं. अउ जब आंधी तूफान थिराथे तब जिहें के तिहें भुइयां मं गिर पाथे, तब सोचथे- हमर तख्ता पलट कइसे होगे, कोन सत्ता ला छीन लिस? तब ओला शंका होथे के एहर जरूर कोनो राजनीतिक दल वाले मन के चाल हे. अउ आजकल ये देश मं अइसन उठापटक के खेल कोन मन करत हे तेला समझत ओला धुर्रा ला देरी नइ लगिस. गजब बखानिस, गारी-गुफ्तार लगइस, निंदा करिस, जइसे नारद जी हा भगवान बिसनू ला पारबती के महतारी हा सप्तरिषी मन के करे रिहिसे.समे बहुत बलवान होथे, ओकर आघू मं ककरो चाल नइ चलय. ओ चाहे तो रंक ला राजा बना दै अउ चाहे तो राजा ला रंक. फेर समे ला घलो अतेक अहंकार के नशा मं चूर नइ हो जाना चाही. नियाव, अनियाव, सही-गलत ला चतवार के चलना चाही. नइ अइसन करही तब कोनो ओला मान अउ इज्जत नइ देही. अइसे झन करे के अहंकार में ओहर कोनो काहय- कुकुर ला ददा काह. काबर कइही ददा, फेर आतंक के जमाना हे, का नइ काहत, करे बर मजबूर होवत हे सब. अइसन दिन, खेल जादा नइ चलय, चलत तक चलही. आखिर एक दिन धुरा ला पटक दिही तौंन दिन का होही- दत्त-निपोरी, दंत खिसोरी. इही पाके छानही मं चढ़के होरा नइ भुंजना चाही
परमानंद वर्मा छत्तीसगढ़ी के जानकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)
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