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*ज़िला मुख्यालय स्थित बेमेतरा शहर की सड़को में मवेशियों का राज, नगर पालिका प्रशासन की उदासीनता से सरकार की महत्वाकांक्षी योजना रोका-छेका अभियान पर लगा ग्रहण*

*बेमेतरा:-* बेमेतरा के नगर पालिका क्षेत्र के सड़को पर मवेशियों का डेरा गौठान को छोड़ मवेशी सड़को पर डारे है।लिहाजा जिला मुख्यालय क्षेत्र में स्थित नगर पालिका बेमेतरा इलाके में मवेशियों का डेरा छत्तीसगढ़ सरकार की रोका छेका अभियान असफल नजर आर ही है!

 

बेमेतरा के गस्ती चौक के समीप कार के चपेट में आने से एक मवेशी गंभीर रूप सें घायल हो गया!

बताया गया की रात् में दुर्ग की ऒर से आरही कार ने सड़क पार कर रहे एक गाय को मारी ठोकर…गाय दोनों पैर सें हूआ अपाहिज काफी समय तक सड़क रहा बाधित वही स्थानीय लोगो के मदद से गाय को सड़क किनारे कर उपचार किया गया! था!

आवारा मवेशियों को गोठान में रखने की योजना फेल खुलेआम बाजार से लेकर सड़क पर घूम रहे हैं मवेशी की झुंड!

राज्य सरकार ने फसलों की सुरक्षा, किसानों की आय को बढ़ाने और शहरों की सडक़ों पर घूम रहे मवेशियों से होने वाले हादसों को रोकने के उद्देश्य से रोका-छेका अभियान की शुरुआत की थी।लेकिन, बेमेतरा जिले में यह अभियान फेल होता नजर आ रहा है। शासन के निर्देशों के बावजूद बेमेतरा नगर पालिका क्षेत्र में मवेशी सडक़ों पर बैठे रहते हैं। साथ ही खेतों में पहुंचकर भी मवेशी फसलों को चर रहे हैं।

पशुओं की सुरक्षा और सडक़ दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए राज्य सरकार ने रोका-छेका अभियान की शुरुआत की थी, जिसके तहत मवेशियों को गोठानों में रखने की योजना है। शासन की महत्तवकांक्षी योजना का कार्य लेना सिर्फ दिखावे तक ही सीमित नजर आ रहा है। बेमेतरा नगर पालिका क्षेत्र में आज भी मवेशी सडक़ों पर बैठे नजर आ रहे है। ये मवेशी हादसों को आमंत्रित कर रहे हंै। बारिश के बाद मवेशी अक्सर मुख्य सडक़ों पर बैठ जाते है, जिनकी चिंता न मवेशी मालिक कर रहे न नगर पालिका प्रशासन और ना संबंधित विभाग। जिसके चलते रात के अंधेर में कई हादसे होते रहते है!

 

*नगर पालिका क्षेत्र अंतर्गत गौठान में न कोई मवेशी नहीं चारा-पानी का व्यवस्थित इंतज़ाम*

 

इस सम्बंध में संबंधित अधिकारी जिन रास्तों से हो कर गुजरते हैं, उन रास्तों पर भी मवेशी बैठे रहते है । बावजूद इसके इन पर अधिकारी भी ध्यान नहीं दे रहे हैं।

बता दें कि छत्तीसगढ़ में रोका-छेका अभियान कहीं धीमा तो कहीं ठप है।

 

*क्या है रोका-छेका अभियान*

दरअसल ग्रामीण इलाकों में रोका- छेका पुराने समय से स्थानीय जिंदगी का अभिन्न हिस्सा रहा है। खरीफ फसल की बोआई के बाद फसल की सुरक्षा के लिए पशुधन को गोशालाओं में रखने की प्रथा रही है, ताकि मवेशी खेतों में न जा पाएं और फसल सुरक्षित रहे। मवेशियों को संरक्षित करना, फसलों को मवेशियों से बचाना और गोबर से कुदरती खाद बनाना इसका मुख्य उद्देश्य है!

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