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भारत में बढ़ती हरियाली पर बाग-बाग हो रहे हैं तो इसके पीछे की कहानी भी जान लीजिए Gardens are happening on growing greenery in India, so know the story behind it too.

नई दिल्ली. पिछले महीने वन मंत्रालय (ministry of forests) की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें बताया गया था कि भारत में वन क्षेत्र बढ़कर 8.09 लाख वर्ग किलोमीटर हो गया है. 2019 के मुकाबले इसमें 2,261 वर्ग किमी की बढ़ोतरी हुई है. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (forest survey of india – FSI) की इस रिपोर्ट से वन प्रेमियों में कहीं खुशी कहीं निराशा जैसी स्थिति रही. कुछ आलोचकों ने सर्वे के तरीके पर सवाल उठाए. एफएसआई को सफाई भी देनी पड़ी. 

भारत के वन क्षेत्र के बारे में सरकारी मैप पूरी कहानी नहीं बता रहे हैं. वन क्षेत्र की एकाएक वृद्धि के पीछे दरअसल वन मापने के पैमानों में बदलाव है.साल में ये रिपोर्ट जारी की जाती है. इसका मकसद भारत के वन संपदा का लेखा-जोखा रखना है क्योंकि इस पर हमारी अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा निर्भर करता है. ।

ISFR की पहले दशक की रिपोर्ट में भारत के फॉरेस्ट कवर में 7400 वर्ग किमी की गिरावट बताई गई थी. उसके बाद 2001 से ISFR ने वनों को मापने के पैमाने में बड़ा बदलाव किया. वन की परिभाषा बदलते हुए हर उस जगह को फॉरेस्ट माना जाने लगा, जहां एक हेक्टेयर एरिया में कम से कम 10 प्रतिशत ट्री कवर हो. इसमें सभी तरह की जमीनें, पेड़, खेती वगैरह शामिल हो गईं. इस वजह से चाय के बागान, नारियल के पेड़, आम के बगीचे, हाउसिंग कॉम्प्लेक्स में बने बड़े गार्डन और यहां तक कि शहरों के बीच की वृक्ष वीथियां को भी

 

 

 मापा जाने लगा. नतीजा ये हुआ कि 1999 से 2001 के बीच एक ही झटके में भारत के वन क्षेत्र में 38 हजार वर्ग किमी की बढ़ोतरी हो गई. एकसाथ समेटें तो यह लगभग केरल जितना इलाका बैठता है. ISFR की इस परिभाषा की वजह से प्राकृतिक रूप से पनपे वनों के साथ-साथ वो इलाके भी आ गए, जहां इंसानी प्रयासों से पौधारोपण करके हरियाली लाई गई. इस हरियाली के भी फायदे हैं लेकिन इनके मुकाबले में प्राकृतिक वन हमारे इको सिस्टम के लिए ज्यादा फायदेमंद होते हैं.विश्व स्तर पर हर साल लगभग एक करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र घट रहा है. विकास के लिए भारत में भी जंगल कट रहे हैं, ये किसी से छिपा नहीं है. पिछले महीने आई वन मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि वनावरण क्षेत्र देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का महज 24 प्रतिशत ही रह गया है. दरअसल, पारिस्थितिक संतुलन के लिए वनों को कुल भूमि क्षेत्र पर 33 प्रतिशत की आवश्यकता होती है, जबकि हमारे पास कुल भूमि क्षेत्र पर लगभग 24 प्रतिशत जंगल शेष है. यह तथ्य हमें यह एहसास दिलाने के लिए काफी है कि वन क्षेत्र नहीं बचा, तो हमारी वन विरासत भी नहीं बच पाएगी.

 

 

 

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