*प्रत्येक व्यक्ति की बुद्धि अलग है – ज्योतिष*
, वह अपनी बुद्धि से सोचता है, और सोचेगा, आपकी बुद्धि से नहीं। और जब तक वह न चाहे, तब तक आप किसी की बुद्धि को बदल नहीं सकते।”
प्रायः लोग यह चाहते हैं, कि दूसरे लोग हमें अच्छा व्यक्ति मानें। अच्छा व्यक्ति समझें। *”चाहे हम अच्छे हों, या ना हों, फिर भी दूसरे लोग हमें अच्छा ही समझें/मानें। और जब हम अच्छे हों ही, तब तो कम से कम हमें अच्छा अवश्य समझें।”
परंतु प्रत्येक व्यक्ति अल्पज्ञ है। अल्पज्ञ होने से उसे भ्रांतियां या संशय होते रहते हैं। उन भ्रांतियों या संशय के कारण वह अनेक गलतियां करता है।” और दूसरों के प्रति अपनी धारणा बना लेता है, कि “यह व्यक्ति ऐसा है, और वह व्यक्ति ऐसा है।” कभी कभी दूसरे लोग भी उसे भड़का देते हैं, विरुद्ध बातें उसके दिमाग में भर देते हैं। “जिससे कि उसको भ्रांति या संशय उत्पन्न हो जाता है, और वह दूसरों के प्रति अपनी गलत धारणा बना लेता है।”
अब दूसरे लोगों की तरह आप भी यही चाहते हैं कि *”लोग हमारे प्रति अच्छी धारणा बनाए रखें।”* और उसके लिए आप चिंतित भी रहते हैं, कि दूसरा व्यक्ति मुझे गलत न समझे, जो कि असंभव है।”वह आप को कहीं न कहीं गलत तो समझेगा ही। क्योंकि वह परमात्मा की तरह सर्वज्ञ नहीं है। और सर्वज्ञ न होने से, उसको कुछ न कुछ भ्रांति संशय आपके प्रति रहेगा ही। इसलिए दूसरे की चिंता न करें। आप कितना भी ज़ोर लगा लें, कितना भी समझा लें, मूर्ख व्यक्ति फिर भी आपकी बात ठीक से नहीं समझेगा। यदि बहुत से प्रमाण तर्क देकर, आज 2 घंटा समय लगा कर आपने उस मूर्ख व्यक्ति को समझा भी दिया, कि “मैं ऐसा नहीं हूं। आप मेरे बारे में ऐसा न सोचें।”*m तो कल कोई दूसरा व्यक्ति चालाकी से उसे फिर भड़का देगा। और फिर आपकी सारी मेहनत बेकार हो जाएगी। *”इसलिए मूर्खों की चिंता न करें, कि वे आप के विषय में क्या सोचते हैं, या कैसी धारणा रखते हैं।”
हां, आपके आसपास यदि कोई बुद्धिमान व्यक्ति हों, जो आपकी बात को समझते हों, प्रमाण तर्क को समझते हों, आवश्यकता पड़ने पर आप उनको अवश्य समझा दें, कि *”मैं ऐसा नहीं हूं। मेरे बारे में आप उल्टा सीधा विचार न करें।”* वे बुद्धिमान लोग आपकी बात को समझ लेंगे। और *”यदि कोई मूर्ख उनके सामने कुछ उलट-पुलट बोलेगा भी, तो वे उनको समझा भी देंगे।” बस इतना ही करें। इससे अधिक चिंता न करें, और सदा प्रसन्न रहें।
ज़रा सोचिए, क्या सब लोग ईश्वर को ठीक ठीक समझते हैं? नहीं समझते। जब नहीं समझते, ईश्वर के विषय में भी बहुत भ्रांति और संशय में रहते हैं, उसे बहुत बुरा भला कहते हैं, उस पर बहुत से झूठे आरोप भी लगाते हैं, फिर भी ईश्वर उन मूर्खों की कोई चिंता नहीं करता और मस्ती से अपना काम करता रहता है।” “ईश्वर के गुण कर्म स्वभाव के अनुसार ही हमें और आपको भी सोचना चाहिए। उसकी तरह से ही मस्त रहना चाहिए। इसी ढंग से आप ठीक-ठाक जी पाएंगे, अन्यथा सारा जीवन दुखी रहेंगे।”