अधूरा सपने! रिटायरमेंट के बाद उत्तराखंड में बसना था, गांव तक सड़क चाही थी.Unfulfilled dreams! Had to settle in Uttarakhand after retirement, wanted a road till the village.
देहरादून. सीडीएस जनरल बिपिन रावत का सपना रिटायरमेंट के बाद उत्तराखण्ड में बसने का था. यह इच्छा उन्होंने 2019 में जताई थी. 9 नवंबर को राजभवन में आयोजित हुए कार्यक्रम में जब वो शामिल होने आए थे, तो उनका कहना था कि गांव में आने जाने के लिए अच्छी सड़क हो, उच्च शिक्षा के लिए सुविधाएं अच्छी हों, इंजीनियरिंग कॉलेज हो, स्वास्थ्य सेवा बेहतर हो ताकि यहां से पलायन न हो. 2004 में सीडीएस रावत अपने मामा ठाकुर बीरेंद्र पाल सिंह परमार के साथ थाती गांव गए थे और उसके बाद 2019 में अपने ननिहाल. उन्होंने गांव के छोटे-बड़े बच्चों और बुजुर्गों से मुलाकात कर रिटायरमेंट के बाद थाती में रहने की बात भी कही थी.जनरल रावत पौड़ी गढ़वाल ज़िले में यमकेश्वर से 4 किलोमीटर दूर बसे गांव सैण बमरौली के मूल निवासी थे. हालांकि लंबा समय उन्होंने गांव में नहीं गुज़ारा था और शिक्षा के लिए बचपन में ही वह देहरादून चले गए थे. देहरादून से भी उनका लगाव हमेशा बना रहा इसलिए वह रिटायरमेंट के बाद उत्तराखंड की राजधानी में ही बसने का अरमान संजोए हुए थे. देहरादून मेंं जनरल रावत का घर बन रहा था. प्रेमनगर के पास उन्होंने ज़मीन ली थी और वहीं उनके घर का निर्माण कार्य होने की भी खबर है. लेकिन इस घर में रिटायरमेंट के बाद का समय गुज़ारने का जनरल रावत का सपना अधूरा ही रह गया.उत्तराखंड के लिए देखे थे रावत ने सपने!
जब पिछले महीने अपने गृह राज्य में जनरल रावत आए थे, तब उन्होंने कहा था, प्रदेश में पर्यटन के लिहाज़ से अपार संभावनाएं हैं. इन पर काम करना बहुत ज़रूरी है, टूरिस्ट हब के तौर पर उत्तराखंड को विकसित किया जा सकता है लेकिन उसके लिए ज़रूरी है कि प्रॉपर तरीके से प्लानिंग की जाए. उनका मानना था अगर सही तरीके से काम किया जाए तो उत्तराखंड विश्व में छाप छोड़ सकता है. साथ ही, उत्तराखंड से पलायन के लिए भी वह चिंतित थे और स्वास्थ्य व शिक्षा का बेहतर न होने को इसकी बड़ी वजह मानते थे.
तो क्या खाली हो गया रावत का गांव?
ज़िला मुख्यालय से करीब 42 किलोमीटर की दूरी पर बसे सैण गांव के हालात को समझने के लिए 2011 की जनगणना देखी जाए, तो यहां 21 घरों में 93 लोगों की आबादी थी. लेकिन एक खबर बता रही है कि यहां के ज़्यादातर लोग छोटे से गांव से पलायन कर चुके हैं. खबर में कहा गया कि कुछ समय पहले जब जनरल रावत अपने गृह ज़िले में थे, तब उन्होंने तत्कालीन सीएम त्रिवेंद सिंह रावत से अपने गांव तक सड़क बनाने की इच्छा जताई थी. कुछ सालों में यह सड़क आधी से ज़्यादा बनी है लेकिन कुछ विवादों के चलते अटकी पड़ी है.