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अवसाद में पहुंचे लोगों का मस्तिष्क किस तरह से काम करता है? depression during coronavirus lockdown | knowledge – News in Hindi

पूरी दुनिया में 35 लाख लोग कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं, जबकि मौतों का आंकड़ा भी लगातार बढ़ रहा है. वैज्ञानिकों के वैक्सीन या दवा खोजे जाने के बीच लोग लॉकडाउन में जी रहे हैं. लगभग सभी देशों में आंशिक या कंप्लीट बंदी लगी हुई है, जो धीरे-धीरे हटेगी. इस बीच आशंका जताई जा रही है कि घरों में बंद लोग डिप्रेशन की जद में आ सकते हैं. कोरोना काल की तुलना साल 1930 के The Great Depression से करते हुए माना जा रहा है कि ये अवसाद और भी ज्यादा खतरनाक होने वाला है. जानते हैं कि डिप्रेशन क्या है और इससे मस्तिष्क में क्या बदलाव आते हैं.

अवसाद किसी को भी हो सकता है
साल 2019 में कैफे कॉफी डे (सीसीडी) के संस्थापक चेयरमैन वी.जी. सिद्धार्थ की संदिग्ध हालातों में मौत और फिर सुसाइड नोट का मिलना बताता है कि डिप्रेशन का पैसों या सामाजिक स्टेटस से खास लेना-देना नहीं. डिप्रेशन का सबसे पहला लिखित प्रमाण ईसापूर्व दूसरी सदी में दिखता है. उस दौरान डिप्रेशन को फिजिकल या मेंटल कंडीशन की बजाए आध्यात्मिक कंडीशन माना गया और इसे चर्च के पादरी ठीक किया करते थे. ग्रीस, रोम, चीन और इजिप्ट में यही माना गया. कुछ वक्त बाद पुजारियों की जगह ग्रीक और रोमन डॉक्टरों ने इसका इलाज शुरू किया. तब जिमनास्टिक, मालिश, खानपान के अलावा गधे के दूध से इसका इलाज किया जाता था.Hippocrates नाम तो खूब सुना होगा. ये वही Hippocrates है जिसने सबसे पहले डिप्रेशन को एक बीमारी की तरह देखा.

कोरोना की तुलना 1930 के The Great Depression से करते हुए माना जा रहा है कि ये अवसाद और भी ज्यादा खतरनाक होगा

समझें, डिप्रेशन आखिर है क्या
ये major depressive disorder के तहत आता है जो कि आम लेकिन सीरियस मेडिकल जरूरत है. अवसाद में हमारे सोचने और काम करने के तरीके पर असर पड़ता है. कम से कम दो हफ्ते तक लगातार सिर्फ नकारात्मक सोच रहे, नींद और खाने का तरीका बदल जाए, हरदम थकान रहे, शौक खत्म हो जाए तो ये सारे लक्षण डिप्रेशन के तहत आते हैं. हालांकि कई दूसरी बीमारियों के लक्षण डिप्रेशन से मिलते-जुलते हैं जैसे कि थायरॉइड, ब्रेन ट्यूमर और विटामिन डी की कमी. ऐसे में डिप्रेशन के नतीजे पर पहुंचने से पहले डॉक्टर दूसरी जांचें भी करवाते हैं.

किनको है ज्यादा खतरा
वैसे तो डिप्रेशन किसी को भी हो सकता है लेकिन कुछ खास लोगों में इसका खतरा ज्यादा रहता है. जैसे मस्तिष्क में कुछ खास केमिकल्स में बदलाव से अवसाद होता है. इसकी वजह से दिमाग के 3 हिस्सों- हिप्पोकैंपस, एमीग्डेला और प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स पर असर होता है. ये तीनों ही हिस्से काफी अहम हैं और याददाश्त, निर्णय लेने की क्षमता और भावनाओं पर कंट्रोल रखते हैं. इनपर असर पड़ने पर इंसान का नॉर्मल व्यवहार बदल जाता है. डिप्रेशन के पीछे कोई आनुवांशिक वजह भी हो सकती है. इसके तहत कुछ लोग जब चुनौतीपूर्ण समय से गुज़र रहे होते हैं तो उनके अवसाद में जाने की आशंका अधिक रहती है. इनके अलावा हिंसा, बचपन के बुरे अनुभव, गरीबी और कमजोर आत्मविश्वास भी डिप्रेशन की वजह हो सकता है.

मस्तिष्क में कुछ खास केमिकल्स में बदलाव से अवसाद होता है

कैसे काम करती हैं दवाएं
रिसर्च में देखा गया कि एंटी डिप्रेसेंट्स लगभग 90 प्रतिशत लोगों पर काम करते हैं. ये मूलतः 4 तरह के होते हैं, जैसे serotonin, norepinephrine, dopamine और monoamine oxidase inhibitors. इन दवाओं के इस्तेमाल से मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन काफी हद तक ठीक हो जाता है. वैसे ये दवाएं तुरंत असर नहीं करतीं, बल्कि तीन से चार हफ्तों के भीतर ही असर दिखना शुरू होता है और इलाज कुछ महीनों से लेकर कई साल तक चल सकता है. ये इस बात पर निर्भर करता है कि डिप्रेशन किस स्तर का है, माइल्ड, मॉडरेट या सीवियर. दवाओं के साथ psychotherapy भी दी जाती है, इसके तहत मरीज से बात करके डिप्रेशन की जड़ तक पहुंचने की कोशिश होती है. कई बार मरीज का डिप्रेशन इतना पुराना और इस स्तर का होता है कि दवाओं के साथ ही साथ electroconvulsive therapy (ECT) भी देनी होती है.

इंटरनेट के जरिए भी पहचान
वैज्ञानिकों ने इंटरनेट पर ऐसे कई थैरेपी प्लेटफॉर्म बनाए हैं जो डिप्रेशन से लड़ने में मदद करते हैं. ये रिसर्च अमेरिका की इंडियाना यूनिवर्सिटी में की गई. शोधकर्ताओं ने 4781 लोगों को रिसर्च में शामिल किया और उन्हें वे थैरेपी दी गईं, जो इंटरनेट पर उपलब्ध हैं या जो इस तरह के दावे करती हैं. सकारात्मक रिजल्ट के बाद ये शोध जर्नल ऑफ मेडिकल इंटरनेट रिसर्च में भी प्रकाशित हुई. रिसर्च से जुड़े एक शोधकर्ता लॉरेंजो लॉसेस कहते हैं- पहले मुझे लगता था कि इंटरनेट पर मिलने वाले एप्स से हल्के-फुल्के अवसाद को ठीक किया जा सकता है लेकिन शोध के नतीजे बताते हैं कि इनसे गंभीर अवसाद से जूझ रहे लोगों को भी मदद मिलती है. iCBT या इंटरनेट-बेस्ड कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी एप्स के जरिए डिप्रेशन से अलग-अलग स्तरों पर प्रभावित लोगों की मदद हो सकती है. हालांकि ये एप मनोवैज्ञानिकों, मनोचिकित्सकों और दवाओं का विकल्प नहीं.

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