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पंचांग के अनुसार अजा एकादशी 3 सितंबर को मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस व्रत का फल अश्वमेघ यज्ञ से मिलने वाले फल से भी अधिक माना गया है

अजा एकादशी व्रत

3 सितंबर, 2021 (शुक्रवार)

सबका संदेश के लिए अजीत शास्त्री जी के लेख

हिंदू धर्म में हर एक एकादशी महत्वपूर्ण होती है। भादव मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी कहा जाता है। अजा एकादशी भगवान विष्णु जी को अति प्रिय है इसलिए इस एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु और साथ में माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसे अन्नदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

 

 

 

हिंदी पंचांग के अनुसार अजा एकादशी 3 सितंबर को मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस व्रत का फल अश्वमेघ यज्ञ से मिलने वाले फल से भी अधिक माना गया है। इसीलिए इस दिन व्रत का पालन सच्ची श्रद्धा के साथ करना चाहिए।

 

अजा एकादशी व्रत मुहूर्त

अजा एकादशी पारणा मुहूर्त – 4, सितंबर को सुबह 06:00:16 से 08:32:11 तक।

अवधि – 2 घंटे 31 मिनट।

 

 

 

पूजा विधि

सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।

घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।

भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।

भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।

अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।

भगवान की आरती करें।

द्वादशी तिथि के दिन प्रातः ब्राह्मण को भोजन कराएं व दान-दक्षिणा दें।

द्वादशी तिथि को ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद उन्हें दान-दक्षिणा दें।

फिर स्वयं भोजन करें।

भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।

इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।

इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।

 

 

 

अजा एकादशी का महत्व

हिन्दू धार्मिक शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जो भक्त विधि विधान से इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं। इसके अलावा अजा एकादशी की कथा को सुनने मात्र से भक्तजनों को अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

 

व्रत के दौरान ध्यान रखें ये बातें

शास्त्रों में एकादशी के दिन चावल खाने को वर्जित बताया गया है। मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाने से व्यक्ति अगले जन्म में रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म लेता है। इसलिए अजा एकादशी के दिन भी भूलकर भी चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।

 

एकादशी का व्रत श्रीहरि के प्रति समर्पण भाव दिखाता है। इसलिए अजा एकादशी के दिन खान-पान और बर्ताव में संयम का ध्यान रखना चाहिए। सभी तिथियों में एकादशी की तिथि को श्रेष्ठ माना जाता है। इसलिए एकादशी का लाभ पाने के लिए लड़ाई-झगड़े से बचना चाहिए।

 

अजा एकादशी व्रत कथा

 

 

प्राचनी काल में एक हरिशचंद्र नाम का राजा हुआ करता था। राजा हरिश्चन्द्र अपनी सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। एक बार देवताओं ने इनकी परीक्षा लेने की योजना बनाई। राजा ने स्वप्न में देखा कि ऋषि विश्वामित्र को उन्होंने अपना राजपाट दान कर दिया है। जब अगले दिन राजा हरिश्चन्द्र विश्वामित्र को अपना समस्त राज-पाठ को सौंप कर जाने लगे तो विश्वामित्र ने राजा हरिश्चन्द्र से दक्षिणा स्वरुप 500 स्वर्ण मुद्राएं दान में मांगी। राजा ने उनसे कहा कि पांच सौ क्या, आप जितनी चाहे स्वर्ण मुद्राएं ले लीजिए। इस पर विश्वामित्र हँसने लगे और राजा को याद दिलाया कि राजपाट के साथ राज्य का कोष भी वे दान कर चुके हैं और दान की हुई वस्तु को दोबारा दान नहीं की जाती। तब राजा ने अपनी पत्नी और पुत्र को बेचकर स्वर्ण मुद्राएं हासिल की, लेकिन वो भी पांच सौ नहीं हो पाईं। राजा हरिश्चंद्र ने खुद को भी बेच डाला और सोने की सभी मुद्राएं विश्वामित्र को दान में दे दीं। राजा हरिश्चंद्र ने खुद को जहां बेचा था वह श्मशान का चांडाल था। चांडाल ने राजा हरिश्चन्द्र को श्मशान भूमि में दाह संस्कार के लिए कर वसूली का काम दे दिया।

 

एक दिन राजा हरिश्चंद्र ने एकादशी का व्रत रखा हुआ था। आधी रात का समय था और राजा श्मशान के द्वार पर पहरा दे रहे थे। बेहद अंधेरा था, इतने में ही वहां एक लाचार और निर्धन स्त्री बिलखते हुए पहुंची जिसके हाथ में अपने पुत्र का शव था। राजा हरिश्चन्द्र ने अपने धर्म का पालन करते हुए पत्नी से भी पुत्र के दाह संस्कार हेतु कर मांगा। पत्नी के पास कर चुकाने के लिए धन नहीं था इसलिए उसने अपनी साड़ी का आधा हिस्सा फाड़कर राजा का दे दिया। उसी समय भगवान प्रकट हुए और उन्होंने राजा से कहा, “हे हरिश्चंद्र, इस संसार में तुमने सत्य को जीवन में धारण करने का उच्चतम आदर्श स्थापित किया है। तुम्हारी कर्त्तव्यनिष्ठा महान है, तुम इतिहास में अमर रहोगे।” इतने में ही राजा का बेटा रोहिताश जीवित हो उठा। ईश्वर की अनुमति से विश्वामित्र ने भी हरिश्चंद्र का राजपाट उन्हें वापस लौटा दिया।

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