आज नागपंचमी के शुभ अवसर पर शास. प्राथमिक शाला कुटेली में नाग देवता का पूजा किया गयाLast rehearsal for Independence Day celebrations, Collector and SP took stock of preparations Today, on the auspicious occasion of Nagpanchami. Nag Devta was worshiped in primary school Kuteli
*आज नागपंचमी के शुभ अवसर पर शास. प्राथमिक शाला कुटेली में नाग देवता का पूजा किया गया* प्रधान प्राचार्य श्रीमती रामेश्वरी कंवर एवं कक्षा शिक्षक श्री दशरथ निर्मलकर एवं विद्यार्थियों के साथ आज नाग पंचमी के शुभ अवसर पर नाग देवता की पूजा किया गया और बच्चो को बताया गया कि नागपंचमी वह त्योहार है जिसे हम पीढ़ी दर पीढ़ी से मना रहे है एवं नाग देवता को भगवान शिव हार के रूप में अपने गले में धारण करते
हैनाग पंचमी का त्योहार हर साल सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. हिंदू धर्म में इस दिन नागों की पूजा का विधान है. नाग पंचमी पर नाग देवता की विशेष पूजा अर्चना की जाती है तथा सुरक्षा, समृद्धि और सर्प दोष से मुक्ति की कामना भी की जाती है. लोग नाग पंचमी के दिन भगवा शिव की पूजा करने के अलावा रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय, काल सर्प पूजन भी करते हैं. इस दिन यह विशेष फल देने वाला होता है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित द्वापर युग के अंतिम राजा थे. वे अत्यंत धर्मशील थे. वे अपनी प्रजा के हित के लिए अनेक यज्ञ अनुष्ठान किया करते थे. इसके बावजूद तक्षक नामक सर्प ने इन्हें मार डाला था. इससे क्रोधित होकर राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने पृथ्वी से इनके समूल नाश के लिए यज्ञ में साँपों की आहुति देनी शुरू की थी.
पौराणिक कथा के अनुसार, नागों की माता कद्रू ने अपनी शौतन विनता को धोखा देने के लिए अपने पुत्रों को आज्ञा दी. परंतु कद्रू के पुत्रों ने माता की आज्ञा की अवहेलना करते हुए सौतेली मां को धोखा देने से मना कर दिया. ससे माता कद्रू ने नागों को शाप दे दिया. माता के शाप से नाग जलने लगे. यह दिन सावन मास के शुक्ल की पंचमी तिथि थी.
नाग भागते हुए ब्रह्मा जी के पास गए. तब ब्रह्मा जी ने श्रावण मास की शुक्ल पंचमी को ही नागों को वरदान दिया कि तपस्वी जरत्कारु नाम के ऋषि का पुत्र आस्तिक नागों की रक्षा करेगा.
नागों के समूल नाश के लिए यज्ञ में उनकी आहुति के दौरान जब परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने इंद्र सहित तक्षक को अग्निकुंड में आहुति के लिए मंत्र पाठ किया, तब आस्तिक ने तक्षक के प्राण की रक्षा की. यह तिथि भी पंचमी ही थी. इस प्रकार नागों के अस्तित्व की रक्षा हुई. और तभी से नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा का प्रचलन शुरू हुआ.