एक तालाब में मिलते हैं पत्थर के अनाज Stone grains meet in a pond
साहिबगंज. साहिबगंज के मनसिंघा पंचायत स्थित कटघर गांव के तालाब में पत्थर के फूड ग्रेन जैसे चावल, दाल, जौ, आलू, प्याज आदि आपको मिल जाएंगे. पत्थर के ये अनाज जीवाश्म (fossil) के रूप में परिणत ग्रीन ग्रेन हैं. करोड़ों वर्ष पहले ज्वालामुखी उद्गार का परिणाम राजमहल की पहाड़ियों में पादप जीवाश्म के रूप में देख सकते हैं. पत्थर के ये अनाज भी इसी उद्गार के परिणाम हैं. बीरबल सहनी इंस्टिट्यूट लखनऊ ने भी जांच के बाद इनके जीवाश्म होने से इनकार नहीं किया है. अब पत्थर के ग्रीन ग्रेन के संरक्षण की जरूरत है. लोग इसे लेकर घर चले जा रहे हैं. अगर इन्हें संरक्षित नहीं किया गया तो पत्थर के ग्रीन ग्रेन समाप्त हो जाएंगे. मालूम हो कि साहिबगंज के राजमहल की पहाड़ियों में प्रचूर मात्रा में पादप जीवाश्म पाए जाते हैं. इसके संरक्षण के लिए मंडरो में जीवाश्म पार्क बनाया गया है.
दरअसल राजमहल की पहाड़ियों में बहुतायत में पादप जीवाश्म पाए जाते हैं. मंडरो में जीवाश्म के संरक्षण के लिए पार्क बनाया गया है. यहां भू वैज्ञानिक शोध के लिए आते रहते हैं. यहां के जीवाश्म 68 से 145 मिलियन वर्ष पुराने हैं. बीरबल सहनी वनस्पति विज्ञान संस्थान लखनऊ में ये जीवाश्म रखे गए हैं. डॉ. रंजीत सिंह 12 वर्षों से साहिबगंज में इस पर शोध कर रहे हैं. वह बीरबल सहनी इंस्टीट्यूट, आइआइटी खड़गपुर और जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीमों का हिस्सा रह चुके हैं.
रंजीत सिंह बताते हैं कि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने 40 साल पहले इसका सर्वे किया था और इसे सिलिका ग्रेन बताया था. वर्ष 2019 में फिर इसी विभाग के संदीप कुमार ने भी इसकी जांच की है. उन्होंने गहन अध्ययन की जरूरत पर बल दिया. उनका मानना है कि यह 75 से 110 करोड़ वर्ष पुराना हो सकता है. उनका मानना है कि ज्वालामुखी विस्फोट के समय ये अनाज संपर्क में आए होंगे और अनाज पर सिलिका का लेयर चढ़ गया होगा. अभी भी इस पर शोध जारी है. डॉ रंजीत सिंह कहते हैं कि इसका संरक्षण कर पूरे इलाके को पर्यटन क्षेत्र बनया जा सकता है. वहीं साहिबगंज डीडीसी प्रभात कुमार बरदियार भी इसके संरक्षण की बात कहते हैं.