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*देवकर में निवासरत मूल आदिवासी कंडरा जाति के लोगों का पारंपरिक कारोबार चढ़ा लॉकडाउन का भेंट*

*(शादी-ब्याह का असल सीजन चौपट होने से बांस कार्य से जुड़े कंडरा परिवार निराश)*

* बेमेतरा :-* वैश्विक कोरोना महामारी के बढ़ते प्रभाव को रोकने प्रशासन द्वारा क्षेत्रभर में लगाए ज़िलाव्यापी लॉकडाउन देवकर नगर में रहने वाले छत्तीसगढ़ के मूल आदिवासी जातियों में से एक बांस आश्रित कण्डरा (बंसोड़)समुदाय के लिए काफी नुकसानदायक साबित हुआ है। लगभग कई दशकों से देवकर की शान व पहचान रहे मूल आदिवासी समाज के लोगों का पारंपरिक कारोबार इस वर्ष भी लॉकडाउन के वजह से पूरी तरह चौपट हो गया है। लिहाजा नगर के वार्ड क्रमांक सात व एक में बसे करीब तीन-चार दर्जन कंडरा परिवार के लोग सीजन के नुकसान से खासे मायुस एवं निराश है। क्योंकि पिछली बार की तरह इस बार की कोरोना महामारी एवं लॉकडाउन के वजह से शादी ब्याह के असल सीजन भी पूरी तरह बर्बाद हो गया। जिसकी भरपाई के लिए समुदाय के कुछ लोग मूल परम्परागत कारोबार को छोड़कर अन्य कामों से अपनी जीविका चलाने में लग गए है।

*देवकर में निवासरत कण्डरा परिवार नगर में शिक्षित व प्रभावी*
छत्तीसगढ़ के मूल जातियों में शुमार आदिवासी समाज के अंतर्गत आने वाले कुंजाम व मरकाम परिवार काफी तादाद में देवकर नगर में रहते है।जिसकी परिवारों की संख्या लगभग 40 से ऊपर बताई जाती है।जो कि ज़िले में अन्य नगरों की तुलना में सर्वाधिक है। वही बात इनके कामों की जाए तो समुदाय का असल कार्य बांस से गाँव मे प्रचलित दैनिक जरूरी सामान व दुर्लभ कलाकृतियों बनाकर उसे आमलोगों में जरूरत आपूर्ति कर जीवनयापन करना है।वैसे तो शासन-प्रशासन द्वारा इस समुदाय को अनुसूचित जाति के रूप में बहुत सारे आरक्षण व अधिकार प्राप्त है।जिसका मकसद इस तबके के लोगों को मुख्यधारा परिपाटी में समृद्ध बनाना।जबकि बात देवकर में कई जाये तो यहां के कण्डरा समाज के युवा वर्ग के अधिकांश लोग अब शिक्षित व जागरूक हो गए है।साथ ही नौकरीपेशे से जुड़ गए है।तो वही कई लोग अन्य क्षेत्रों में भी अपना प्रभाव व वर्चस्व बनाये हुए है।जबकि कुछ परिवार के बुजुर्ग, कुछ महिलाएं व युवा आज भी अपनी पारम्परिक पहचान व हुनर से लोगों के जरूरते पूरी कर रहे है।

*लॉकडाउन में बांस की किल्लत,शादी-ब्याह का सीजन भी बर्बाद*
चूँकि क्षेत्र में महीनेभर से ज़िलाव्यापी लॉकडाउन प्रभावी होने के वजह बांस आश्रित परिवारों लोगों को बांस के लिये कभी कभार भटकना पड़ रहा है।सामान्य तौर पर एक बांस समाज के लोगों को शासकीय योजना के तहत 50 रुपये पड़ता है।जबकि कभी लॉकडाउन अथवा अन्य जैसी परिस्थितियों-परेशानियों के चलते वितरण में अनियमितता हो जाने पर काफी दूर दराज के कई बांस रहित वनवर्ती इलाकों व निजी संग्रहण केंद्रों से खरीदना पड़ रहा है,जो प्रति बांस लगभग 150 से 200 रुपया खर्चा आ रहा है।वही लॉकडाउन के कारण अक्षय तृतीया के अवसर पर होने वाले शादी ब्याह प्रभावित होने से इनके कारोबार पर काफी असर पड़ रहा है,क्योंकि सालभर में शादी-ब्याह का सीजन ही सामानों की बिक्री के लिए उत्तम अवसर रहता है,जो इस बार पूरी तरह लॉक डाउन का भेंट चढ़ रहा है।जिससे इस कारोबार से जुड़े लोग निराश व मायुष नज़र आ रहे है।
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“चूंकि हमारे बेमेतरा ज़िले वन परिक्षेत्र नही होने से बांस के लिए कण्डरा समाज को बालोद ज़िले से आपूर्ति होती है।जो कि अपने ज़िले के लोगो को प्राथमिकता देते है इसलिए हमारे ज़िले के कण्डरा लोगों को सालभर का कोटा भी ठीक से नही मिल पाता है।जिससे काफी परेशानी होती है।”
*०राजा मरकाम०*
*(नगर पंचायत देवकर)*

“फिलहाल लॉकडाउन ने हमारा सारा कारोबार चौपट कर दिया है। ज़िला प्रशासन को हमे आर्थिक राहत हेतु कोरोना गाइडलाइंस के साथ सीजन में खुले कारोबार छूट देनी चाहिए।जिससे हमारी आजीविका चल सके।प्रशासन को इस सम्बंध में गम्भीरता से ध्यान देने की जरूरत है।
*०विजय सुपलभगत०*
*(निवासी-जय बुढ़ादेव वार्ड, देवकर)*

“दरअसल बांस आधरित कलाकृति व सामानों का कारोबार असल सीजन शादी-ब्याह का सीजन होता है,जहां ग्रामीण लोग इस अवसर पर बांस से बने कलाकृति व चीज़ों को दैनिक उपयोग व सजावट के लिए करते ह,जो लॉकडाउन के कारण पुर्णतः प्रभावित हो रहा है।”
*०दीना कुंजाम०*
*(रहवासी-वार्ड-07,देवकर)*

उल्लेखनीय है कि इन दिनों लॉकडाउन प्रभाव में कुछ अड़चने होने से कभी दिक्कत हो जाती है।फिलहाल बीते दिनों देवकर के बांस टॉल में हज़ार से अधिक बांस पहुंची है।वही 2 हज़ार से ज्यादा बांस कुछ दिन में फिर आ जायेगी।जिससे जल्द वितरण कर दी जाएगी।
*०सलीम कुरैशी०*
*(वन रेंजर- साजा एवं बेरला अनुविभागीय परिक्षेत्र)*

 

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