छत्तीसगढ़

भागवत कथा में बताया की जिस व्यक्ति की मृत्यु सातवें दिन हो उसको क्या करना चाहिए ?

श्रीमद भागवत महापुराण कथा के तृतीय दिवस पर महाराज श्री जी ने भागवत कथा में बताया की जिस व्यक्ति की मृत्यु सातवें दिन हो उसको क्या करना चाहिए ? इस वृतांत का विस्तार से वर्णन किया। महाराज श्री जी ने कथा में बैठे सभी श्रोताओं को सुंदर सा कीर्तन भजन को” श्रवण कराते हुए कथा को शुभारंभ करते हुए कहा कि राजा परिक्षित को श्राप लगा श्राप इसलिए लगा क्योंकि कलयुग को राजा ने कुछ स्थान दिए। और कलयुग को कुछ स्थान किसलिए दिए कलयुग ने कहा था और युगो में जो फल तपस्या योग ज्ञान यज्ञ इन सब से प्राप्त होता है। वही फल कलिकाल में मनुष्य को सहज में ही कलिकाल में भगवान के कथा और कीर्तन से ही प्राप्त हो जाता है। कौन सा फल जो यज्ञ समाधि योग इत्यादि से प्राप्त होता है। वही फल कलिकाल में जीव को सहज में ही भगवान के नाम जाप करने से मिलता है। नाम किसका जाप करे राम – राम कहे की कृष्ण – कृष्ण कहे ? जो गुरु के द्वारा प्राप्त मंत्र है। वही मंत्र हमारे लिए लाभ दायक है। और वही मंत्र हमारे लिए इस संसार की सबसे बड़ी पूंजी, संपत्ति है। कई लोग कहते है हम तो भगवान को ही गुरु मानते है। निश्चित भगवान ही गुरु है। लेकिन उस गुरु तक पहुंचाने के लिए भी एक गुरु चाहिए। गुरु के चरणों की सेवा मेरी भक्ति है। कौन सी बोले तीसरी भक्ति, पहली भक्ति संतों का संग करों दूसरी भक्ति आपका मन मेरी कथा में लगे। भगवान का सच्चा श्रोता कथा पंडाल से जाते ही प्लानिंग करता है। चिंतन मनन ध्यान उसका कथा में ही चलता रहता है।

महाराज श्री जी ने बताया की भगवान की कथा को भगवान के सिवा कोई और नहीं कह सकता इसलिए आपको सदैव भगवान की कथा को पुरे ध्यान से सुनना चाहिए क्यूंकि चित को एकाग्र कर सुनी हुई कथा आपको मनवांछित फल देती है। आपकी साँसों का सम्बन्ध आपके मन से है और साँसों को अपने काबू में रखने के लिए हमे प्राणायाम करना चाहिए जिससे हम अपनी साँसों को काबू में कर सकते है और अगर आपकी संगत दूषित हुई तो आपका मन आपके काबू में नहीं रहेगा इसलिए आपको अपनी संगत अच्छे लोगों के साथ करनी चाहिए। महाराज श्री जी ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कल का कथा क्रम याद कराया की राजा परिक्षित को श्राप लगा कि सातवें दिन तुम्हारी मृत्यु सर्प के डरने से हो जाएंगी। जिस व्यक्ति को यहाँ पता चल जाये की उसकी मृत्यु सातवें दिन हो वो क्या करेगा क्या सोचेगा ? राजा परीक्षित ने यह जान कर उसी क्षण अपना महल छोड़ दिया। राजा परीक्षित ने अपना सर्वस्व त्याग कर अपनी मुक्ति का मार्ग खोजने निकल पड़े गंगा के तट पर। गंगा के तट पर पहुंचकर जितने भी संत महात्मा थे सब से पूछा की जिस की मृत्यु सातवें दिन है उस जीव को क्या करना चाहिए। किसी ने कहा गंगा स्नान करो, किसी ने कहा गंगा के तट पर आ गए हो इससे अच्छा क्या होगा, हर की अलग अलग उपाय बता रहा है।

तभी वहां भगवान शुकदेव जी महाराज पधारे, जब राजा परीक्षित भगवान शुकदेव जी महाराज के सामने पहुंचे तो उनको राजा ने शाष्टांग प्रणाम किया। शाष्टांग प्रणाम करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। शुकदेव जी महाराज जो सबसे बड़े वैरागी है चूड़ामणि है उनसे राजा परीक्षित जी ने प्रश्न किया कि हे गुरुदेव जो व्यक्ति सातवें दिन मरने वाला हो उस व्यक्ति को क्या करना चाहिए? किसका स्मरण करना चाहिए और किसका परित्याग करना चाहिए? कृपा कर मुझे बताइये.अब शुकदेव जी ने मुस्कुराते हुए परीक्षित से कहा की हे राजन ये प्रश्न केवल आपके कल्याण का ही नहीं अपितु संसार के कल्याण का प्रश्न है। तो राजन जिस व्यक्ति की मृत्यु सातवें दिन है उसको श्रीमद भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए तो उसका कल्याण निश्चित है। श्रीमद भागवत में 18000 श्लोक, 12 स्कन्द और 335 अध्याय है जो जीव सात दिन में सम्पूर्ण भागवत का श्रवण करेगा वो अवश्य ही मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है। राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से प्रार्थना की हे गुरुवर आप ही मुझे श्रीमद भागवत का ज्ञान प्रदान करे और मेरे कल्याण का मार्ग प्रशस्थ करे।

भगवान मानव को जन्म देने से पहले कहते हैं ऐसा कर्म करना जिससे दोबारा जन्म ना लेना पड़े। मानव मुट्ठी बंद करके यह संकल्प दोहराते हुए इस पृथ्वी पर जन्म लेता है। प्रभु भागवत कथा के माध्यम से मानव का यह संकल्प याद दिलाते रहते हैं। भागवत सुनने वालों का भगवान हमेशा कल्याण करते हैं। भागवत ने कहा है जो भगवान को प्रिय हो वही करो, हमेशा भगवान से मिलने का उद्देश्य बना लो, जो प्रभु का मार्ग हो उसे अपना लो, इस संसार में जन्म-मरण से मुक्ति भगवान की कथा ही दिला सकती है। भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण है भागवत कथा पृथ्वी के लोगो को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं।

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