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दक्षिण कोरिया और स्वीडन ने कैसे बगैर लॉकडाउन कर लिया कोरोना पर काबू how south korea and sweden are fighting coronavirus without lockdown | knowledge – News in Hindi

ब्रिटेन में कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ा है. यहां कोरोना मरीजों की संख्या 177,454 हो चुकी है, जबकि इसके कारण हो रही मौतों का आंकड़ा 27 हजार पार कर चुका है. वहीं चीन का पड़ोसी देश होने के बाद भी दक्षिण कोरिया में इंफेक्शन का आंकड़ा अबतक 10 हजार में है, वहीं 250 जानें गई हैं. स्वीडन भी दूसरे देशों से बेहतर दिख रहा है, जहां 21,520 कोरोना मरीजों के बीच 2,653 जानें गई हैं. इन देशों की कोरोना पर फतह इसलिए भी अहम है क्योंकि यहां पर दूसरे देशों की तुलना में वैसा सख्त और कंप्लीट लॉकडाउन भी नहीं हुआ था.

सबसे पहले बात करते हैं दक्षिण कोरिया की. फरवरी के आखिर में एक दिन में यहां 900 से ज्यादा मामले आए लेकिन अगले दो ही महीनों के भीतर दर तेजी से गिरी. पिछले पूरे हफ्ते यहां सिंगल डिजिट तक मामले सिमटकर रह गए. इस बीच अप्रैल में ही देश की नेशनल असेंबली के लिए चुनाव भी हुए. ये एक ऐसा कदम है, जिसके बारे में दुनिया के ज्यादातर देश फिलहाल सोच भी नहीं सकते क्योंकि उनकी सारी ताकत बंदी और कोरोना से हुई कैजुएलिटी को संभालने में ही लग रही है.

फरवरी के आखिर में एक दिन में दक्षिण कोरिया में 900 से ज्यादा मामले आए लेकिन अगले दो ही महीनों के भीतर दर तेजी से गिरी

पब्लिक गेदरिंग के लिए क्या-क्या है खुलाइस देश में बार, कैफे, दुकानें और सारे ही होटल खुले हुए हैं. जल्दी ही चर्च पर लगा प्रतिबंध भी हटने वाला है. बता दें कि यहां के एक चर्च के कारण ही देश में कोरोना के मामले तेजी से बढ़े थे, जिसके बाद चर्च के अधिकारियों पर हत्या की कोशिश का आरोप लगा था. जिम, जहां संक्रमण की आशंका बहुत ज्यादा होती है, वे भी अगले कुछ दिनों के भीतर खुलने जा रहे हैं. इसी महीने से दक्षिण कोरिया की फुटबॉल और बेसबॉल टीमें भी खेलना शुरू कर देंगी. अब सोचने वाली बात ये है कि जहां बंदी के बाद भी दूसरे देश कोरोना को संभाल नहीं पा रहे, वहां इतनी छूट के बाद भी ये देश सुरक्षित कैसे है? इसकी वजह है देश की स्पष्ट रणनीति, जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग, जांच और इलाज पर सख्त जोर दिया गया.

वैसे इससे पहले सार्स और मर्स से प्रभावित हो चुके द. कोरिया ने काफी कुछ सीख लिया था. साल 2015 में मर्स के कारण यहां 38 जानें चली गई थीं, जिसके कारण सरकार पर काफी आरोप भी लगे थे. इन बीमारियों से सीख ले चुकी सरकार ने कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और जांच पर काफी जोर दिया. कोरोना वायरस टास्क फोर्स बनी, जिसका मंत्र था- test, trace and contain. देश में कोरोना की जांच के लिए 600 सेंटर बने, जिनमें एक-एक दिन में 20000 तक जांचें होने लगीं. कोरोना संक्रमितों के संपर्क में आए लोगों का डाटा निकालने के लिए तकनीक की मदद ली गई. उनके फोन रिकॉर्ड, जीपीएस, बैंक या खरीदारी के बिल और सीसीटीवी इमेज के जरिए संदिग्धों तक पहुंचा गया.

इससे पहले सार्स और मर्स से प्रभावित हो चुके द. कोरिया ने काफी कुछ सीख लिया था

Korean Centre for Disease Control and Prevention लगातार बताता रहा कि आपके दायरे में कोई संदिग्ध है. इसमें उनका नाम या पता नहीं लेकिन जेंडर और एज ग्रुप बताया जाता रहा. इससे लोग काफी सचेत रहे और यहां तक कि किसी संक्रमित के संपर्क में आ चुके लोग खुद ही टेस्टिंग के लिए सेंटर पहुंचने लगे.

देश के लोगों की जागरुकता और सरकार को चुनौती देने की क्षमता भी कोरोना से जीत के पीछे एक वजह मानी जा रही है. यहां अक्टूबर 2016 से लेकर मार्च 2017 तक कोरियन लोगों ने प्रेसिडेंट Park Geun-Hye पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए बड़ा भारी प्रोटेस्ट किया. इसमें 2.3 लोग सड़कों पर उतर आए थे.

इसके अलावा दक्षिण कोरिया का हेल्थकेयर सिस्टम भी काफी अच्छा रहा है. साल 2015 में Organisation for Economic Co-operation and Development (OECD) ने दुनिया का सबसे अच्छा हेल्थकेयर सिस्टम घोषित किया था. यूके के फ्री हेल्थकेयर सिस्टम NHS की तुलना में यहां का सिस्टम निजी तरीके से चलता है लेकिन देश की 97 प्रतिशत आबादी को नेशनल हेल्थ इंश्योरेंस मिलता है.

पहले ही श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारियों को झेल चुके देश में रोज लगभग सारे ही देशवासी टेंपरेचर लेते हैं, ये दिनचर्या में शुमार हो चुका है. यहां तक कि रेस्त्रां या किसी पब्लिक प्लेस या सरकारी दफ्तर में जाने पर पहले तापमान लिया जाता है, उसके बाद ही प्रवेश मिलता है. मामूली लगने वाली ये कुछ बातें साउथ कोरिया की कोरोना से जीत में काफी अहम रहीं.

श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारियों को झेल चुके देश में रोज लगभग सारे ही देशवासी टेंपरेचर लेते हैं

अब बात करते हैं स्वीडन की. यहां पर 21,520 संक्रमितों के बीच 2,653 मौतें हुई हैं. इस देश ने अपने दूसरे यूरोपियन मुल्कों की लॉकडाउन नहीं अपनाया, इसके बावजूद संक्रमण और कैजुएलिटी काबू में है. देश में संक्रमण के लिए एक खास अप्रोच अपनाया गया. इसके तहत 28 मार्च को 2,000 स्वीडिश रिसर्चरों ने एक पिटीशन साइन किया. इसमें World Health Organization’s (WHO) recommendations के कोरोना अनुमोदन पर तुरंत से तुरंत काम करना शुरू किया गया. नागरिकों में बीमारी फैलने के बाद इम्युनिटी विकसित करने के हर्ड अप्रोच पर काम की बजाए यहां पर टेस्टिंग और इलाज पर जोर दिया गया.

सीएनएन से बातचीत में Karolinska Institutet में ट्यूमर और सेल बायोलॉजी पर काम कर रहे प्रोफेसर जेन अल्बर्ट कहते हैं कि स्ट्रिक्ट लॉकडाउन से एक वक्त तक के लिए संक्रमण की रफ्तार कम होती दिखती तो है लेकिन वो बीमारी का हल नहीं है. बीमारी आगे बढ़ जाती है और जब लोग बाहर निकलते हैं, तब हमला करती है. यानी लॉकडाउन तो इसका समाधान नहीं है. बल्कि अगर बीमारी होनी ही है, और हेल्थकेयर सिस्टम मरीजों की देखभाल कर सकता है तो कल का इंतजार करने की बजाए अस्पतालों को आज ही काम करना चाहिए.

स्वीडन का हेल्थकेयर सिस्टम बिना लॉकडाउन के भी कोरोना मरीजों की देखभाल अफोर्ड कर सकता है

स्वीडन का हेल्थकेयर सिस्टम बिना लॉकडाउन के भी कोरोना मरीजों की देखभाल अफोर्ड कर सकता है. वैज्ञानिकों के इस मत में Swedish Institute for Health Economics (IHE) के डायरेक्टर पीटर लिंडग्रेन भीा शामिल हैं. उनके मुताबिक ICU में आए मरीजों की हालत में सुधार है यानी इलाज काम कर रहा है. हालांकि वे मानते हैं कि लॉकडाउन न होने के कारण उम्रदराज लोगों में संक्रमण और मौत की दर बढ़ी है. इसलिए फिलहाल बुजुर्गों की केयर पर जोर दिया जा रहा है.

स्वीडिश हेल्थ मिनिस्टर Lena Hallengren के अनुसार अब केयर होम्स में रह रहे उम्रदराज लोग चिंता का विषय हैं. हालांकि वे यह भी मानती हैं कि फिलहाल ये नहीं कहा जा सकता कि स्वीडन ने कोरोना पर जीत हासिल कर ली है. वे कहती हैं कि हमने लॉकडाउन नहीं किया है लेकिन सारे बिजनेस उसी तरह से चल रहे हों, ऐसा भी नहीं है. हम लगातार जांच रहे हैं कि कोरोना से निपटने के लिए हमारा वर्तमान तरीका कितना सही है.

स्वीडन में लगभग सारी गतिविधियां सोशल डिस्टेंसिंग के कायदे को मानते हुए चालू हैं

बता दें कि फिलहाल स्वीडन में रेस्त्रां-बार, सैलून और कुछ स्कूल खुले हुए हैं, जबकि 50 से ज्यादा लोगों का इकट्ठा होने सख्त मना है. लगभग सारी गतिविधियां सोशल डिस्टेंसिंग के कायदे को मानते हुए चालू हैं, इसके बाद भी फिलहाल तक इस देश में अस्पताल ओवरलोडेड नहीं हैं, वहीं उम्रदराज लोगों में ही संक्रमण ज्यादा होने के बाद भी अबतक 20 प्रतिशत से ज्यादा ICU बेड खाली हैं. इससे अनुमान लगाया जा रहा है कि स्वीडन अपने पड़ोसी देशों जैसे डेनमार्क, नॉर्वे और फिनलैंड की तुलना में बेहतर कर रहा है.

हालांकि लॉकडाउन न लगाने के स्वीडिश अप्रोच के बारे में कहा जा रहा है कि यहां की सरकार और हेल्थकेयर सिस्टम हर्ड इम्युनिटी विकसित करने की कोशिश कर रहा है लेकिन अब तक वहां से ऐसा कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. स्वीडिश एपिडेमियोलॉजिस्ट Anders Tegnell का मानना है कि देश में हर्ड इम्युनिटी बन रही है. वे कहते हैं कि देश की बड़ी आबादी बाहर रहते हुए बीमारी से एक्सपोज हो रही है. ऐसे लोगों का टेस्ट करने पर उनके शरीर में कोरोना के लिए एंटीबॉडी भी दिख रही है. ऐसे में अगर कोरोना का दूसरी बार हमला होता है तो देश के लोगों के सुरक्षित रहने की संभावना काफी ज्यादा होगी.

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