छत्तीसगढ़

कल और आज के होली में अन्तर – ज्योतिष*

*कल और आज के होली में अन्तर – ज्योतिष*

होली प्रेम प्रतीक है सदभावन है रंग।

शरारत की पिचकारी भीगें तन मन अंग।।

 

होली का मादक उत्सव मन भाता है भंग।

ढोल नगाड़े मंजीरें बरस रहें हैं रंग।।

 

होली का मौसम आया उड़ रहा रंग गुलाल।

एक दूजे से गले मिलों रहें ना मन में मलाल।

 

आया नया दौर होली का रहा है ढंग।

मदिरा पीकर उछले कूदे हो रहा है हुड़दंग।।

 

रंग की जगह‌ पेंट लगाये युवकों जब को कौन समझाए।

डीजे धुनों में नाचे गाये परम्परा की धज्जी उडा़ये।।।

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