छत्तीसगढ़दुर्ग भिलाई

जीएसटी की विकृतियों से देश के व्यापारी भारी परेशान, Businessmen of the country are deeply troubled by the distortions of GST

इसे दूर करने कैट टीम मिली जीएसटी आयुक्त और कलेक्ट से
जीएसटी नेटवर्क की गति औरं क्षमता ऐसा बढाए कि आने वाले 10 साल तक  बढे हुए काम को यह झेल सके
दुर्ग / कन्फ़ेडरेशन आफ आल इंडिया ट्रेड (कैट) के पवन बडज़ात्या,मोहम्मद अली हिरानी, प्रहलाद रुंगटा, संजय चौबे, रवि केवलतानी ने बताया की जीएसटी भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक अनिवार्यता है और पूरी अर्थव्यवस्था जीएसटी पर ही निर्भर है लेकिन इस समय जीएसटी के सम्बन्ध में जो स्थिति चल रही है उससे भारतवर्ष के व्यापारी वर्ग की स्तिथी अब असहनीय हो गई है और आप इस पर तुरंत ध्यान देने और इसके लिए सुधारात्मक कदम उठाये जाने के लिए आज  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नाम जीएसटी आयुक्त एवं दुर्ग जिलाधीश को एक ज्ञापन व्यपारियों एवं व्यपारिक संगठनों के द्वारा सौपा गया ।  इसी तारतम्य में प्रहलाद रुंगटा एवं बडज़ात्या ने बताया की जीएसटी भारतीय उद्योग एवं व्यापार के लिए एक दीर्घकालीन समस्या बनकर इसे नुक्सान पहुचायेगा. अब इनका संशोधन नहीं होने से अब व्यापारी वर्ग परेशान हो रहा है, जब कि यह कर सरकार को मिल भी चूका होता है, अब इसे फिर से वसूलना और उस पर ब्याज लेना ये केवल तकनीकी खामी के कारण व्यापार को दंड देना ही हुआ जब कि जीएसटी में प्रारम्भ से लेकर आज तक सरकार से भी कई तकनीकी गलतियां हुई है जिसे भी लगातार अधिसूचनाएं एवं परिपत्र जारी कर सुधार करने की कोशिश की गई है! इसी कड़ी में मोहम्मद अली हिरानी एवं केवलतानी ने कहा की एक छोटी सी सुविधा व्यापारी वर्ग में देने में कहीं कोई भी परेशानी नहीं होनी चाहिए. इसे आप व्यापार एवं उद्योग की और से अनुरोध मान कर इस सुविधा देने का कष्ट करें.! गौर तलब है की जो  राशि सरकार के खजाने में आ चुकी है उस पर ब्याज लगाने का ना तो कोई औचित्य है ना ही कोई व्यवहारिक और आर्थिक तार्किकता और इस तरह से यह व्यापारिक वर्ग पर एक अनुचित बझ है. जीएसटी कानून भारत में एक सरल अप्रत्यक्ष कर कानून लाने के लिए लाया गया था लेकिन यह एक नया कानून था और गलतियां और देरी भी सभी पक्षों के द्वारा किया जाना स्वाभाविक है  कैट ने कहा की जीएसटी के कई  प्रावधान ने भी व्यापारी वर्ग को बहुत परेशान कर रखा है. इस तरह की कागजी मांग खड़ी करना वह भी इस समय जब कि जीएसटी खुद ही प्रयोगात्मक दौर से गुजर रहा है व्यापारी वर्ग पर बोझ डालने का कोई तर्क नहीं है. जो पैसा कर के रूप में सरकार को मिल चुका है उस पर सिर्फ इसलिए ब्याज लगा देना कि उसे सेट ऑफ नहीं किया है,जो कि एक तकनीकी खामी है, उचित भी नहीं है और व्यवहारिक भी नहीं है. आयकर कानून में भी जो रकम चालान के द्वारा बैंक में जमा करा दी जाती है उसी तारीख से ही इसे जमा मान लिया जाता है और इसी तरह से ही जीएसटी में भी बैंक में राशि जमा करा देने से इसे जमा मान लिया जाना चाहिए!पवन बडज़ात्या एवं रुंगटा ने कहा की पहले जीएसटी नेटवर्क अपना काम तो करें ।

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